तम्हीद (भूमिका) :
अल्जीरिया,लेबनान,मिस्र,सऊदी अरब,यमन, कुवैत,ईरान,इराक़,जॉर्डन,इस्राइल,फलस्तीन,शाम,तुर्की, बुलगारिया आर्मेनिया…आदि कभी एक सल्तनत इन इलाकों तक फैली हुई थी जिसे हम सल्तनत- ए- उस्मानिया(the Ottoman Empire) के नाम से जानते हैं।
हज़ार साल पहले तुर्की को “अनातोलिया” कहते थे इसके पूर्व (मशरिक़) में सलजूक़ी हुक़ूमत थी। ये सलजूक़ तुर्क नस्ल से ताल्लुक रखते थे बल्कि ये सारा इलाका रूमियों के कब्जे में था। विशाल रोमन साम्राज्य अनातोलिया बल्कि पूर्वी (मशरिकी) इलाक़ो तक फैला हुआ था। जिसका केन्द्र (मरकज़) कुस्तुन्तुनिया (Constentinapole) था। आज इसे ज़माना इस्तानबुल (Istanbul) के नाम से जानता है।
इस सल्तनत को रोमन साम्राज्य (Roman empire) के नाम से याद किया जाता है।
11वीं सदी में अनातोलिया के कंट्रोल के लिए सलजूक़ियो और रुमियों में जंगे होती रहती थी। बुनियादी तौर पर ये इलाका रुमी सल्तनत (Byzantine Empire) का था।
एर्तुग़रुल :
यहीं कहीं वो तुर्क खाना बदोश कबीले जो चंगेज खान के हमले के बाद भागे भागे फिर रहे थे उनमें “एर्तगुरुल” का कबीला भी था। ये तुर्काने ओग़ोज़ कबीले का हिस्सा था।
जो एर्तगुरुल के बाप सुलेमान शाह के नेतृत्व में अपने वतन “खुरासान” को छोड़ कर मुख्तलिफ मुल्कों में घूमता हुआ शाम की तरफ जा रहा था। दरिया ए फ़ुरात को पार करते हुए सुलेमान शाह डूब कर मर गया। क़बीले का अक्सर हिस्सा उस वक़्त बिखर गया। लेकिन जो लोग रह गए थे वो एर्तगुरुल और उसके भाई दुंदार के साथ एशिया कोचक की तरफ रवाना हुए और सुल्तान अलाउद्दीन सलजूक़ी की सल्तनत में दाखिल हो गए।
1281 में 90 साल की उम्र में एर्तगुरुल का इंतेकाल हुआ और वे सगवत के करीब दफन हुए।आज उस कबीले को दुनिया उस्मानी तुर्को के नाम से जानती है।
उस्मान :
एर्तगुरुल के बेटे का नाम उस्मान था। इसके बारे में मशहूर था कि वह एक बहादुर दिलेर इंसान था। इसके जंगजू भी जबरदस्त घुड़ सवार थे। उस्मान अपने सिपाहियों के साथ घुल मिलकर रहता था उसके इसी रवय्ये ने उसे अपनी फौज में हरदिल अजीज बना लिया था। उस्मान ने कुछ ही अर्से में घुड़ सवार तुर्को की एक फौज बना ली थी। उसने अपने इर्द गिर्द मौजूद दूसरे सरदारों को भी साथ मिला लिया था।अब वो इतना ताकतवर हो चुका था कि मंगोलों की छोटी मोटी टोलियां अगर उससे टकरा जाए तो कन्नी काट कर निकल लेती थी। उस्मान अपनी रियासत के विस्तार और सुरक्षा दृष्टि से रूमियो की (Byzantine)हुक़ूमत पर कब्ज़ा करना चाहता था।
उस्मान अपने अहम मामलात में उस वक़्त के बहुत बड़े शेख ओबाली से मशवरा लिया करता था। वो शेख ओबाली को अपना मुर्शिद मानता था। शेख की एक बेटी से उस्मान शादी भी करना चाहता था। लेकिन शेख ओबाली इस पर राज़ी नहीं थे।
उस्मान को एक रात एक ख़्वाब दिखा कि एक चांद शेख ओबाली के सीने में से निकल कर उसके सीने में आ जाता है। फिर उस्मान के जिस्म से एक बड़ा दरख़्त निकल जाता है जिसकी शाख़े मशरिक और मगरिब में फैल जाती है। फिर इस दरख़्त की जड़ों से चार बड़े दरिया निकलते है और चार बड़े पहाड़ दरख़्त की इन फैलती शाखो को सहारा देते है। फिर अचानक तेज़ हवा चलती है कि दरख़्त के पत्ते उड़कर एक अज़ीम शहर की तरफ बढ़ते हैं। ख़्वाब के मुताबिक़ ये शहर ऐसी जगह था जहां दो समुंदर और दो बर्रेआज़म(महाद्वीप) मिलते है। ये शहर एक अंगूठी की तरह था और उस्मान ये अंगूठी पहनना ही चाहता था कि इतने में उसकी आंख खुल गई।
उस्मान ने ये ख़्वाब शेख़ ओबाली को सुनाया तो शेख ओबाली ने कहा: “मुबारक हो खुदा ने तुम्हे एक बहुत बड़ी सल्तनत की बशारत दी है और तुम मेरी बेटी से शादी करोगे”।
तारीख़ गवाह है कि इस ख़्वाब की ताबीर पूरी हुई जिसका आगाज़ ये हुआ कि शेख की बेटी राबिया (या माल ख़ातून) से उस्मान की शादी हुई।
बुज़ुर्ग की बताई हुई ताबीर और रूमियो की कमज़ोरी के बाईस उस्मान के हौसले बढ़ने लगे। उसने 1317 में Byzantine के एक अहम शहर कुस्तुनतुनिया जिसे आज istanbul कहते हैं के क़रीब एक बहुत अहम शहर (बुरूसा) का मुहासरा कर लिया।
ये जंग दस साल जारी रही लेकिन फ़तह तुर्को के हिस्से में आई। 1326 में बुरुसा के गवर्नर ने उस्मानियों के सामने हथियार डाल दिए थे। लेकिन जब शहर फ़तह हुआ तो उस्मान मौत के क़रीब पहुंच चुका था। उस्मान के बेटे “ओरख़ान” ने फतह की खबर जब बूढ़े बाप को सुनाई तो वो बहुत खुश हुए। उन्होंने बेटे की तारीफ़ की और उसे अपना जानशीन मुकर्रर कर दिया। साथ ही वसीयत की कि उन्हें बुरूसा में ही दफन कर दिया जाए और बुरुसा को उस्मानियों का नया दारुल हुक़ूमत बना दिया जाए।
और यूं अब उस्मानिया के पास एक ऐसी रियासत आ गई थी जिसे वो सल्तनत का नाम दे सकते थे। और ये नाम दे दिया गया। ओरखान ने पहली बार सुल्तान का लक़ब इख्तियार किया(कुछ लोगो के अनुसार बायज़ीद ने सबसे पहले ये लक़ब इखितयार किया) सल्तनत की बुनियाद रखी जा चुकी थी जिसे उस्मान ने अपने ख़्वाब में देखा था।
ओरख़ान :
14 century में सूरत ए हाल ये थी अनातोलिया की कई छोटी बड़ी रियासते एक दूसरे के मुकाबले पर थी
हर एक के पास दो चॉयस थी कि वो या तो अपने इर्द गिर्द की रियासतों पे हमला कर दे और या वो खुद बड़ी रियासत के कब्जे में आकर खत्म हो जाए।
अनातोलिया से (Byzantine) का इक़्तिदार खत्म हो चुका था। लेकिन अनातोलिया के उत्तरी इलाक़े बेथिनिया में अब भी कई शहर और किले इनके कब्जे में थे।सुल्तान
ओरख़ान इनको भी फ़तह करना चाहता था ताकि रूमियो का अनातोलिया से मुकम्मल सफाया हो जाए और वो अनातोलिया में अपनी मजबूत सल्तनत बना सके। तो उसने बेथिनिया के इन शहरों को घेरना शुरू कर दिया। अनातोलिया के इन रूमी किलो के मुहासरे शुरू हो गए।।
जब बाज़ंतीनी शहंशाह को इसकी खबर हुई कि उसके रहे सहे इलाको पर तुर्क कब्ज़ा करना चाहते हैं तो उसने अपने शहरों के लिए लश्कर तय्यार किया।
जब रूमी शहंशाह अपनी फौज लेकर निकला तो हर तरफ खबर फैल गई कि रुमी शहंशाह उस्मानी तुर्को के मुकाबले पर आ रहा है। क्यूंकि ऐसा पहली बार हो रहा था कि कोई रुमी शहंशाह अपनी फौज का नेतृत्व खुद कर रहा हो तो इसीलिए हर तरफ़ चर्चा होने लगा। उधर से ओरखान भी अपनी फौज लेकर निकल पड़ा।और फिर जीत उस्मानियो की हुई। इस जीत से रूमियों को एक बहुत बड़ा झटका लगा। क्यूंकि रुम तुर्की को एक छोटी सी फौज मानता था। और खुद को एक बहुत बड़ी ताक़त। और ये ताकत थी भी क्यूंकि रूमी हज़ार साल एक बड़े एरिये राज कर रहे थे। उस्मानियो की इस फ़तह ने जहां रूमियो के हौसले तोड़े वहां एक काम और हुआ। रूमियो के एक अहम जनरल “कटाकोजिनस” ने खुद अपनी आंखो से उस्मानियो को लड़ते देखा कि कितनी लड़ाका फौज है। उसने एक शातिर इंसान की तरह उस्मानियो को अपनी ताकत बनाना सोचा। वो इसलिए कि कटाकोजिनस खुद शहंशाह बनना चाहता था लेकिन न वो शहंशाह का भाई था और ना उसका लड़का। तो बादशाह बनने के लिए बगावत एकमात्र रास्ता था।
तो उसने सुल्तान ओरख़ान से खुफिया राब्ते करना शुरू कर दिए। यानी अब तुर्को के सबसे बड़े दुश्मन रोमियो का सबसे अहम जनरल तुर्को से मिल चुका था। उसने सुल्तान से मदद की दरखास्त की और बदले में कई फ़ायदे भी रखे जिसमें सबसे अहम ये था कि उसने अपनी बेटी की शादी सुल्तान ओरखान से करने का वादा किया। जब 1341 में जब रूमी शहंशाह मर गया तो उसका 9 साला लड़का गद्दी पर बैठा। यहीं जनरल कटाकोजिनस ने बगावत कर दी। और कहा कि मुझे सुल्तान बनाओ वरना में रियासत से जंग करूंगा अब शहंशाह को तो इतनी समझ ना थी लेकिन उसकी मां ( mother Queen) समझ गई। तब रूमी सल्तनत में खुलकर ख़ाना जंगी हुई। जिसमें एक तरफ रूमी सल्तनत और बल्गेरियाई फौज तो दूसरी तरफ उस्मानियों व जनरल की फौज थी।
छह साल तक मुसलसल जंग चलने के बाद कटाकोजिनस को शहंशाह बना लिया गया।अब तुर्की का असर रोमन साम्राज्य के अंदर तक हो गया और वहां का शहंशाह सुल्तान ओरखान का ससुर भी बन गया था।
तुर्को की रिवायत थी कि किसी ईसाई मुल्क को फतह करने के बाद वो गाज़ी कहलाने लगते थे। जैसे एर्तुग़रुल गाज़ी,उस्मान गाज़ी ओरख़ान गाज़ी। ओरख़ान का एक लड़का सुलेमान यूरोप में मिलिट्री बेस बनाने लगा।
कटाकोजिनस की बादशाहत खत्म हो गई और रोमन साम्राज्य में एक नया बादशाह बन गया.जो तुर्की का दोस्त नहीं बल्कि बहुत बड़ा दुश्मन था। जैसा कि पहले से होता आ रहा था। वहीं 1362 में सुलतान ओरख़ान गाज़ी भी मर गया लेकिन सुलतान अपने बाप से मिली रियासत को एक सल्तनत बना चुका था । उसके तीन बेटे थे सुलेमान, मुराद और ख़लील।
सुलेमान जिसने अपने बाप के हुक्म से यूरोप में मिलिट्री बेस बना चुका था वो पहले ही इस दुनिया से रुखसत हो गया था। और मुराद ने खलील को कत्ल कर दिया था। तो अब सल्तनत का नया सुल्तान मुराद हो गया था।
मुराद अव्वल :
1 अगस्त 1389 को सुल्तान मुराद 100000 यूरोपीय फौज के सामने अपनी 60000 फौज को लेकर लड़ रहा था जिसे जंग ए कोसोवो कहते है उसमे सुल्तान मुराद खुद फौज को कमांड कर रहा था। जब जंग शुरू हुई तो यूरोपियन पहले तो भारी पड़ रहे थे लेकिन बाद में यूरोपियन पीछे हटना शुरू हो गए इस जंग में सुल्तान मुराद मारा गया और उधर से प्रिंस लेज़र भी मारा गया। अब उस्मानियों का कमांडर सुल्तान मुराद का बेटा बायज़ीद हो गया।
बायाज़ीद ख़ान यलदरम :
अब नया सुल्तान बायज़ीद बन गया लेकिन बायज़ीद के सामने एक बहुत बड़ा चैलेंज सलीबी नहीं बल्कि इस इन्कलाब का नाम था जिसे दुनिया तैमूरलंग के नाम से जानती है।
तैमूर एक जंगजूं इंसान था। तैमूर ने अपनी जंगी महारत के बल पर समरकंद पर कब्ज़ा कर लिया था। समरकंद को उसने हेडक्वार्टर बनाकर उसने अपनी हुक़ूमत मौजूदा उज़्बेकस्तान,पाकिस्तान,इंडिया, अफ़ग़ानिस्तान,ईरान इराक़,रशिया,सीरिया व तुर्की की सरहदों तक फैला ली थी। ख़ौफ़ अमीर तैमूर का हथियार था वो जिस शहर में भी जाता वहां हजारों बेगुनाह लोगो को मौत के घाट उतार देता पूरे के पूरे शहर को आग लगा देता वहां के बूढ़े बच्चे औरतों को उसमे डाल देता और ज़मीन में गाडकर उनकी गर्दनें उड़ा देता उनकी खोपड़ियों के मीनार बना देता और ये सब करके अपने ज़ुल्म की खबरे फैलने देता ताके लोगों में उसकी जुल्म की धाक बैठ जाए।
1399 में इसी तैमूर की सरहद सल्तनत ए उस्मानिया से मिलने लगी। उस्मानिया और तैमूर साफ देख रहे थे के आज नहीं तो कल दोनों का टकराव होकर रहेगा। हुआ यूं कि तैमूर मुसलमानी इलाकों पे कब्जे कर रहा था तो उसने बगदाद की ईंट से ईंट बजा दी और इराक़ को अपने कब्जे में कर लिया। तैमूर और उस्मानी सल्तनत की सरहदें आपस में मिलने लगीं। फिर तैमूर के हमलों की ताब न लाकर अज़रबैजान के कुछ सरदार भागकर सुल्तान बायाज़ीद के पास पहुंचे जिनमें क़रा युसुफ़ तुर्कमान और अहमद जलाइर अहम थे। इसी तरह अनातोलिया के वो इलाक़े जिसे उस्मानिया ने कब्ज़ा कर रखा था उसके मुसलमान सरदार तैमूर के पास पनाह के लिए पहुंचे और उन्हें भी पनाह मिल गई। इस तरह दोनो के टकराव के लिए ज़मीन तैयार हुई।
सुल्तान बायाज़ीद यलदरम का दूसरे उस्मानी सुलतानों की तरह ये उसूल था कि वो मुसलमानो से जंग करने से बचता था। और मुमकिन हद तक कोशिश करता कि टकराव की नौबत न आये।
लेकिन इधर यूरोप की मुत्ताहिदा (संयुक्त) फ़ौजों की “नाइको पोल्स” में सुल्तान बायाज़ीद ख़ान यलदरम के हाथों ज़बरदस्त शिकस्त ने यूरोप के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर दी थी। इस जंग में ग़द्दारी के बाद क़ुस्तुनतुन्या में बैठे क़ैसर (हरक्यूलिस)के लिए बायाज़ीद से बचना बहुत मुश्किल था। और सुल्तान बायाज़ीद क़ुस्तुनतुनिया को फ़तह करने के लिए निकलने ही वाला था। क़ैसर ने ये जान लिया था कि उसके मज़हब वाले ईसाईयों में बायाज़ीद का मुक़ाबला करने की ताक़त नहीं है। तो उसने साज़िश से काम लेते हुए तैमूर लंग को एक लम्बा ख़त लिखा जिसमें बड़ी फ़रियादो के साथ इस बात पर उसको उभारा गया कि वो बायाज़ीद के बढ़ते क़दमो को रोके। जो तैमूर की सल्तनत के लिए बड़ा ख़तराबन सकता है।और जिसने उसके बाग़ियो को पनाह देने की जुर्रत की है। तैमूर के भेजे में ये बात घुस गयी और वो हिन्दुस्तान से बायज़ीद को सबको सिखाने के इरादे से निकला।
पहले तैमूर ने कासिदों के जरिए बायज़ीद को एक ख़त भेजा। उसने उसमे लिखा कि तुमने जो काफिरों के मुल्क पर कब्ज़ा किया है उसे तुम अपने पास रखो और जो दूसरे इलाक़े है उन्हें छोड़ दो वरना में तुम पर खुदा का कहर बन कर तुमसे बदला लूंगा। ये ख़त एक आलमी ताकत को एक सीधी सीधी धमकी थी। बायाज़ीद को अमीर तैमूर के ख़त ने आग बबूला कर दिया और उसने अपनी फ़ितरी बहादुरी और गैरत के चलते साफ़ इंकार कर दिया।
सुल्तान ने तैमूर को एक ग़ज़ब नाक ख़त भेजा उसमे लिखा। “क्यूंकि तुम्हारे लामहदूद लालच की कश्ती खुदगर्ज़ी के गढ़े में उतर चुकी है तो तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि अपने गुस्ताखी के बाजमनो को नीचे कर लो और खुलूस के साहिल पर पछतावे का लंगर डाल दो क्यूंकि सलामती का साहिल भी यही है। वरना तुम हमारे इंतकाम के तूफान में सजा के उस समुंदर में ग़र्क हो जाओगे जिसके तुम मस्तहिक हो”।
तैमूर तक ये ख़त पहुंचा,तो अब इस जंग को कोई नहीं टाल सकता था। यूरोपीय ईसाई जो अभी तक उस्मानियों से लड़ रहे थे और इसे इसाई और मुसलमानों की लड़ाई का नाम दे रहे थे वो तैमूर को कहने लगे कि हम तुम्हारे साथ है यहां तक के Byzantine Empire ने भी खुफिया हिमायत का यकीन दिला दिया था। अब तैमूर ने अनातोलिया के एक इलाक़े सीवास का मुहासरा कर लिया था और बहाना ये था एक ये मुसलमानी इलाका है।
बायज़ीद उस वक्त क़ुस्तुनतुनिया का मुहासरा कर रहा था। और उसकी फ़ौजे देर सवेर उस पर क़बज़ा ही करने वाली थी। जब उसे तैमूर के हमले की खबर मिली
तो उसने अपने बेटे एर्तुग़रुल को इसकी हिफ़ाज़त के लिए भेजा। ज़ाहिर है ये क़िला फ़तह होना मुश्किल था इसी लिए तैमूर ने एक ज़बरदस्त चाल चली इसकी बुनियाद गिरवा दी, दीवारें गिर गई और शहर पर कब्ज़ा कर लिया फिर तैमूर ने गिरफ्तार तुर्कों और शहरियों से इंतक़ाम लिया और अपना (trademark) यानि ख़ौफ़ हर तरफ़ फैला दिया उसने चार हज़ार कैदियों को ज़िंदा गाड़ कर दीवार में चिनवा दिया और ऊपर से मिट्टी डाल दी बायाज़ीद के बेटे एर्तगुरुल और दीगर सरदारों को भी क़त्ल कर दिया।
अंगूरा की जंग :
अब तैमूर ने अपना कैंप अंगूरा (अंकरा) पर लगा दिया जहां तुर्की की फौज आगे निकल गई और उनको जब तैमूर की फौज ना मिली तो वे वापस पलटे जहां उन्हें अमीर तैमूर की फौज मिली अंक़रा में तैमूर को तीन बड़े फ़ायदे थे : एक ये कि मैदान उसकी मर्ज़ी का था,दूसरा ये कि उसकी फौज बायज़ीद से तक़रीबन 6 लाख ज़्यादा थी जबकि उसमे हिंदुस्तान से लाए गए हाथी भी शामिल थे, तीसरा ये कि उसकी फौज को आराम करने और ताज़ा दम होने का मौका मिल गया था। चौथे ये कि बायज़ीद की फौज में शामिल तातारी ऐन मौके पर टूटकर तैमूर की तरफ़ आ गये। इसके मुकाबले में बायज़ीद को देखिए उसे इस मुक़ाम पर दो बड़े नुक़्सान थे। पहला ये कि उसकी फौज बहुत भूकी थी, दूसरा ये कि उसकी फौज में से 20000 सिपाही ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था।
दोनो सुल्तान अच्छी तरह जानते थे कि ये धरती की सबसे बड़ी मिलिट्री जंग है और दुनिया में इन दोनों सल्तनत के सिवा कोई और तीसरी सल्तनत इनके मुकाबले में थी भी नहीं।
जैसे ही जंग हुई तो बायाज़ीद की फ़ौज ने ज़बरदस्त हमला करते हुए तैमूर के कई दस्ते उलट दिये, बायाज़ीद तैमूरी फ़ौजो को चीरता हुआ बढ़ता चला गया। यहां तक कि वो तैमूर के क़रीब पहुंच गया। लेकिन तैमूर के सिखाये हुए तातारी दस्ते ऐन वक्त पर बायज़ीद का साथ छोड़कर तैमूरी के साथ मिल गये अब तैमूरी फौज भारी पड़ने लगी और जैसे ही बायज़ीद भागते हुए निकला तो तैमूरी फौज के एक सिपाही ने बायज़ीद को तीर मार दिया और उसको क़ैदी बना लिया और उसके चारो लडकों को अपनी तलवार के नीचे रख दिया। ये सल्तनत ए उस्मानिया के लिए बदतरीन शिकाकस्त थी इससे बुरी जंग आज तक नहीं हारे थे।
अब सल्तनत ए उस्मानिया का सुल्तान तैमूर का कैदी था, तेमूर ने उसके बेटो की इस शर्त पर छोड़ दिया कि उसकी बरतरी तस्लीम करते रहे। बायज़ीद इसको बर्दाश्त ना कर सका और वो दौराने क़ैद मर गया। इसके कुछ अरसे बाद 1405 में अमीर तैमूर भी मर गया। और अब बायज़ीद के लडको में जंगे शुरू हुई, उसके चार बेटे थे :सुलेमान, मुहम्मद,ईसा और मूसा। ये एक दूसरे के ख़ून के प्यासे रहे।
ये जंग तकरीबन 11 साल चली मूसा और सुलेमान तो मारे गए और ईसा ऐसा भागा कि तारीख़ के सफ़हात में से ही ग़ायब हो गया।
मुहम्म्द अव्वल :
अब सल्तनत ए उस्मानिया का नया सुल्तान मुहम्मद अव्वल था जिसका बहुत सा वक़्त सल्तनत को इक्कठा करने में ही लग गया था। सुल्तान मुहम्मद अव्वल ने ये किया कि उस्मानियों की तारीख लिखवानी शुरू कर दी।सुल्तान के इंतेकाल के बाद उसका बेटा सुल्तान “मुराद सानी” बना।
मुराद सानी :
मुराद सानी ने 1421 में तख्त पर बैठने के अगले साल ही ही constantainapole कुस्तुनतुनिया का मुहासरा कर दिया। लेकिन उसके एक शख्स मुस्तफा जो ख़ुद को बायाज़ीद का लडका कहता था और जिसने सुल्तान मुहम्मद अव्वल से भी बग़ावती की थी, उसने रूमी शहंशाह के कहने पर सुल्तान मुराद सानी से भी बगावत कर दी। सानी को मजबूरन कुस्तुनतुनिया का मुहासरा खत्म करके उससे जंग लड़नी पड़ी।
इस लड़ाई में मुस्तफा तो मारा गया लेकिन रूमियो के मरकज कुस्तुनतुनिया पर दोबारा क़दम बढ़ाने की कोशिश न की। और कुस्तुनतुनिया से सिर्फ़ ख़िराज लेकर ही काम चलाता रहा। लेकिन बेटे ने बाप के अधूरे मिशन को मुकम्मल किया। वो बेटा यानी “मुहम्मद सानी” जिसे दुनिया सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह के नाम से जानती है वो अपने बाप की गलती नहीं दोहराना चाहता था।
फ़ातेह क़ुस्तुनतुनिया मुहम्मद सानी :
कुस्तुनतुनिया में एक बहुत बड़ा चर्च था जिसे (हागिया सोफिया) कहते थे। इस चर्च के बाहर एक 100 फुट की मीनार पे एक रोमन शहंशाह का घोड़े पर सवार एक मुजस्सिमा था। ये मुजस्सिमा(मूर्ति) उसी का था जिसने हागिया सोफिया चर्च बनवाया था।
अब कुस्तुनतुनिया को फतह करने के लिए दो चीज़े बहुत जरूरी थी एक तो पूरी रियासत में अमन कायम रहे और दूसरी तोपे बहुत ताकतवर हो। तो सुल्तान ने ये ही किया उसने सारे रूमियो से गठजोड़ कर लिया और उन्हें तिजारती साथी बना लिया।
और दूसरा ये कि कुस्तुनतुनिया का बादशाह constantine 11 ने सुल्तान को जब एक मामूली सा बादशाह समझा तो ज्यादा ग़ौर व फ़िक्र न की। एक हंगरी का आदमी जिसका नाम ऑर्बान था वो बहुत अच्छी तोपे बनाता था उसने कुस्तुनतुनिया की दीवारों को अच्छी तरह देख रखा था तो अब वो सुल्तान के पास पहुंचा और सुल्तान ने उसे मुंह मांगी कीमत दी।
सुल्तान ने तुर्को के रिवाज के मुताबिक घोड़े की दुम से बना एक परचम महल के बाहर गाड़ दिया ये इस बात का ऐलान था कि सुल्तान जंग शुरू करने जा रहा है।
कुस्तुनतुनिया 1000 साल पहले रूमी शहंशाह कोंस्टेंटाइन के द्वारा आबाद किया था अपने दारुल हुक़ूमत के तौर पर लेकिन आज जब कुस्तुनतुनिया की दीवारों को मलियामेट कर देने के लिए एक लश्कर तय्यार हो रहा था जब भी वहां का बादशाह कोंस्टेंटाइन इलेविन था। कोंस्टंटाइन के पास ना ही जंगी तोपे थी और ना ही 200000 का लश्कर। लेकिन मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम दोनों ही की किताबो में लिखा है कि कोंस्टंटाइन बहुत बहादुर आदमी था आखिरी सांस तक लड़ने वाला था।।
23 मार्च 1453 में जुमा का दिन था सुल्तान ने खास तौर पर जुमे के दिन को मुबारक समझते हुए रखा था।
उधर कुस्तुनतुनिया में भी फौज के रवाना होने की खबर हो चुकी थी। वहीं 1 अप्रैल को Sunday था उस्मानियों को नाकाम बनाने की दुआए मांगी जा रही थी और ज़ोर ज़ोर से घंटी बजाई जा रही थी। लेकिन आया सोफिया में न ही कोई दुआ मांगने वाला था और न ही शम्मा जलाने वाला।
2 अप्रैल को जब सुल्तान की फौज पहुंची तो किले के दरवाज़े आख़िरी बार सील बंद कर दिए गए।वो मलतापे की उसी पहाड़ी पर खड़ा होकर शहर को देख रहा था जिस पर कभी उसका बाप खड़ा हुआ था। हागिया सोफिया के बुलंद मीनार यहां से भी दिखाईं देते थे। सुर्ख सेब यानी (red apple) जो कि रुमी इस किले को कहते थे अब वह सुल्तान के सामने था।
दो महीने की जंग के बाद 29 अप्रैल की सुबह 7 बजे का वक़्त था। और कुस्तुन्तुनिया 1000 साल बाद सल्तनत ए उस्मानिया के हाथो फतह हो चुका था और सुर्ख सेब उनकी झोली में आ गिरा था। “यनी चरी”(तुर्क की ताक़त वर फौज) शहर के अंदर जा चुके थे और बाहर खड़ी उस्मानी थकी हुई फौज में एक जोश आ गया था और वो भी “यानी चरी” के पीछे आने लगे।
शहर के मुहाफिज इधर उधर जान बचाते फिर रहे थे।
700 साल का इंतजार खत्म हो चुका था। लेकिन मसला था शहर को महफूज़ और पुर अमन रखने का।।
इस शहर को फतह होने का मतलब था रूमियो के लिए कयामत।। लेकिन सैकड़ों लोग जान बचाने के लिए हागिया सोफिया की तरफ भागे। वहीं हागिया सोफिया जिसका उन्होंने बॉयकॉट कर रखा था। उसके बाद कुछ “यनी चरी” हागिया सोफिया के अंदर गए और उन सब लोगो को कैदी बना लिया था और चर्च का सारा खज़ाना (माल ए गनीमत) के तौर पर इकट्ठा कर लिया।
अब शहर पूरी तरह फतह हो चुका था 21 साला नौजवान उस्मानी सुल्तान (सुल्तान मुहम्मद फतह) अब सबसे ज़्यादा चाहने वाले शहर का मालिक बन गया था।
वो शहर फतह हो चुका था जिसका मुसलमानों को 7 सदियों से इंतजार था। जिसकी पेशीनगोई (हुज़ूर सल्ल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने की थी।
एक मर्तबा (हुज़ूर सल्ल्लाहू अलैहि वसल्लम) आराम फरमा रहे थे तो इतने में ही आप की आंख लग गई और आप (सल्ल्लाहु अलैहि वसल्लम) नींद से बेदार हुए तो मुस्कुराने लगे। एक सहाबिया (हज़रत उम्मे हराम रज़िअल्लाहु अन्हा) ने फरमाया। अल्लाह के रसूल आप क्यूं मुस्कुरा रहे हैं। आप सल्ल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : “मैने देखा कुछ लोग अल्लाह की राह में जिहाद करने निकलेंगे। और केसर के शहर कुस्तुनतुनिया को फतह करेंगे तो अल्लाह उन्हें बख्श देगा”।
फिर दिन ढले सुल्तान शहर में दाखिल हुआ वो सबसे पहले गिरजाघर हागिया सोफिया के पास पहुंचा। फिर घोड़े से उतरा और उसने ज़मीन से मिट्टी उठा कर अपनी पगड़ी पर डाल दी (ये उसका खुदा के सामने आजज़ी का इकरार था)
फिर वो इमारत में दाखिल हुआ यहां एक सिपाही ने अज़ान दी और सुल्तान ने इस गिरजा घर को मस्जिद बनाने का ऐलान कर दिया।ऐलान के साथ ही इसको एक नया नाम दिया गया (आया सोफिया) (इसका पहले नाम हागिया सोफिया था)2 जून को आया सोफिया में जुमे की नमाज़ अदा की गई। और इस मौके पर सुल्तान ने शहर को एक नया नाम दिया ‘Islambol’ जिसका मतलब था इस्लाम का शहर।
सुल्तान सलीम अव्वल के दौर में जब उसने मिस्र पर कब्ज़ा कर लिया था तो अरब के मुसलमानों ने उसे खलीफा मुकर्रर कर दिया था और जुमे के खुतबे में उसे खलीफा तस्लीम कर लिया था। जब ये बात सलीम अव्वल को पता चली तो उसने कासिद को अपना शाही लिबास दे दिया। और जभी से वो सल्तनत खिलाफत में बदल गई जिसे हम खिलाफत ए उस्मानिया के नाम से जानते है
एक गद्दार मुस्तफा कमाल अतातुर्क की वजह से
जब ओटोमन साम्राज्य इतना कमज़ोर हो गया था,तो उसने खुद को यहूदियों,संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड के साथ संबद्ध कर लिया। भविष्य में तुर्की लौटने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और इस तरह तीन महाद्वीपों में फैली सल्तनत टूटने लगी।
ख़िलाफत के पतन के बाद 40 अलग-अलग वजूद में आए। यहूदियों ने बताया कि उन्होंने तुर्की पर अपना शासन लागू करना शुरू कर दिया था, और मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने ओटोमन साम्राज्य को उखाड़ फेंकने के बाद तुर्की पर जो जुल्म ढाए थे,वे तो अनगिनत हैं।
ग़द्दार अतातुर्क का परिचय :
मुस्तफा कमालके फासीवाद ने तुर्की को गुमराही, बदतमीजी और फरेब का केंद्र बना दिया था।मुस्तफा कमाल के वर्तमान में अज्ञात व्यक्तित्व को निम्नलिखित शर्तों पर अतातुर्क का शीर्षक दिया गया था:
तुर्क साम्राज्य के अंतिम सुल्तान के साथ तीन संधियाँ जिसके तहत तुर्की को 100 वर्षों के लिए प्रतिबंधित किया गया था,इनकी शर्तें इस प्रकार हैं:
* इस्लामिक संस्कारों का अंत *
* इस्लामिक कानून का अंत *
* तुर्की खनिज भंडार नहीं निकाल सकता *
* समुद्री कर जमा नहीं कर सका। *
मुस्तफा कमाल अतातुर्क के अत्याचार :
यह तुर्की की सेना थी जिसने तुर्क खलीफा को उखाड़ फेंका और तुर्की में सभी धार्मिक संस्थानों और मस्जिदों को बंद कर दिया।उसने मस्जिद आया सोफिया को भी म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया था। उसने अरबी भाषा की लिपि उसके शिक्षण एवं सीखने पर प्रतिबंध लगा दिया और यहां तक कि अरबी में अज़ान के उच्चारण पर भी पाबनदी लगा दी गई। महिलाओं के हिजाब पर प्रतिबंध लगाया तुर्की के प्रधानमंत्री रजब तय्यिब एर्दोगान ने उस वर्ष तुर्की सेना में प्रार्थना पर प्रतिबंध हटा दिया।
लेकिन अब तुर्की में राष्ट्रपति रजब तय्यिब एर्दोगान ने मस्जिद आया सोफिया को जो 86 साल पहले एक म्यूज़ियम था फिर मस्जिद में बदल दिया।
24 जुलाई 2020 को मस्जिद में रजब तय्यब एर्दोगान की कयादत में फिर से जुमा पढ़ाया गया। और 2023 में तुर्की से सब प्रतिबंध हट जाएंगे।
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